Rajani katare

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बंधन जन्मों का भाग -- 9

        


  "बंधन जन्मों का" भाग- 9

पिछला भाग:--


काम में मन नहीं लग रहा था... बाबू जी रोज 
ही घूमने जाते हैं पर इतनी देर कभी नहीं करते....
विमला बार बार अंदर बाहर हो रही....
उसे समझ नहीं आ रहा क्या करे!!
कुछ काम में मन नहीं लग रहा....

अब आगे:--
पर काम तो करना है.... बच्चों को स्कूल भी 
भेजना है... नाश्ता तो तैयार हो गया आज 
बाबू जी के पसंद का नाश्ता बनाया है-पौहा 
और हलुआ......

अंदर आकर बच्चों को नाश्ता देती है... तुम 
लोगखाओ जब तक बाबू जी भी आते ही 
होंगे.... माँऽऽ आज फिर इसको ज्यादा दिया 
आपने- देखो मेरा हलुआ कम है... तुम लोगों 
का रोज का ये ही नाटक है... सबको बराबर दिया है चलो खाओ चुपचाप......

इतने में बाबू जी आ जाते हैं... अंदर आते ही अरे
वा आज तो बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है....
लगता है हलुआ बना है....
बाबू जी आप कहाँ इतनी देर कर दिए, हमें बहुत चिंता हो रही थी.....
खुश खबरी है बेटा इसी लिए देर हो गयी.....
और देख इसी खुशी में अपने आप हलुआ भी
बन गया... मीठा तो सबको खाना ही है आज....
चल जल्दी से ले आ और अपने लिए भी लेकर
आना.....

ला दे और यहाँ बैठ जा... सबसे पहले तू मुँह मीठा
कर... फिर बताता हूँ खुशखबरी....
बेटा आज बगीचे में एक अजनबी दोस्त बन गया...
उसके स्कूल में तेरी नोकरी पक्की ऽऽऽ....
कल तुझे दिन में 11 बजे जाना होगा....

दूसरे दिन विमला ने नित्यकर्म से निवृत्त होकर
फ़टाफट परांठे बनाए... दाल, चावल, सब्जी
सभी कुछ बना लिया... बच्चों को चाय के साथ परांठे दिए नाश्ते में सबके टिफिन के साथ अपना भी टिफ़िन लगा लिया.... बाबू जी बोले बेटा-
मुझे तो दाल चावल ही दे दो...  अच्छे से खा पाऊँगा... वैसे भी दो चार दिन से दाढ़ में तकलीफ
हो रही है... बाबू जी आज शाम को आप डॉक्टर को दिखाने जरुर जायेंगे... हाँ बेटा आज जरुर से
दिखाकर आऊँगा....

विमला ने भी जल्दी से दाल चावल खाए और
तैयार होकर....सब बाहर निकले विमला ने ताला
लगाया.... बच्चों को स्कूल छोड़ा फिर बाबू जी के साथ स्कूल गयी....
उस अजनबी दोस्त ने बड़ी इज्जत से उन्हें बैठाया
बोले बेटा आप नि:संकोच होकर आओ....
आपकी नोकरी पक्की है चिंता करने की बिल्कुल
जरुरत नहीं है.....

मैं शाम को अपनी बूढ़ी को लेकर आऊँगा बेटाऽऽ
मिठाई खाने... ठीक है!!
हाँ जी चाचा जी खाली मिठाई नहीं!! आप लोग
खाना खाकर ही जाएंगे.....
हाँ बेटा अपने प्रमाणपत्र बगेरह जमा कर दो...
आज ही से आपको पढ़ाना है.....
चल यार अब मैं चलता हूँ.....

बाबू जी 4 बजे शाम को बच्चों को लेकर आ गये,
चाय बनाने रख दी गैस पर.....
चाय बन जाये तो चाय के साथ बिस्कुट खाना है,
या ब्रेड खाना है...?
दादू हमको ब्रेड खाना है.... ठीक है चाय बन गयी
ब्रेड भी देता हूँ तुम सब को.....
दादू फ्रिज खोलकर ब्रेड निकालते हैं... इतने में विमला भी आ जाती है.....
आजा बेटा मुँह हाथ धोकर... तेरे लिए भी चाय बनाई है... मैंने सोचा आती ही तो होगी!!
सो तुम्हारे लिए भी बना ली.... 

बाबू जी आप क्यों परेशान हुए!! मैं करती न आकर
बेटा अब इतना तो मैं रोज ही करुंगा...तू थकी हारी
आयेगी... चाय पीकर कुछ तो एनर्जी आयेगी...
और हँसने लगते हैं.... बच्चे तो अब दादू के हाथ
की चाय पियेंगे......

विमला बेटा संघर्ष तो अब शुरु हुआ है तेरा....
मानता हूँऽऽ आर्थिक समस्या तो सुलझ गयी है....
लेकिन अब घर का काम काज... बाहर का भी देखना.... नोकरी करना और फिर बच्चों की
भी देखभाल.... उनकी अच्छे से परवरिश की
जिम्मेदारी भी तो तुझ पर ही आ गयी..... 
बहुत बड़ी ज़िम्मेदारियां आ गयीं हैं तुझ पर.....
क्रमशः--

कहानीकार-रजनी कटारे
     जबलपुर ( म.प्र.)

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